चोट पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया,
पत्थर को बुत की शकल में लाने का शुक्रिया.
जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए,
ऐ - नींद आज तेरे ना आने का शुक्रिया.....
सूखा पुराना ज़ख़्म नए को जगह मिली,
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया...
आती न तुम तो क्यों मै बनाता ये सीढियाँ,
ऐ-दीवारों मेरी राहों में आने का शुक्रिया....
अश्कों सा माँ की गोद में आकर सिमट गया,
नज़रों से अपनी, मुझको गिराने का शुक्रिया.
अब ये हुआ, के दुनिया ही लगती है मुझे घर,
यूँ मेरे घर में, आँग लगाने का शुक्रिया.
ग़म मिलते हैं, तो और निखरती है शायरी,
ये बात है, तो सारे ज़माने का शुक्रिया.
अब मुझे आ गए हैं मनाने के सब हुनर,
ऐ-ख्वाब मुझसे यूँ रूठ जाने का शुक्रिया.
**^००एक ख्वाब००^**
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