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Tuesday, February 28, 2012
"*अनजाना ना समझ*"
मोहलत को इंतज़ार का फ़साना ना समझ,
ऐ पत्थर दिल मुझे तेरा दीवाना ना समझ,
मिटा दे मुझे अपनी हर यादों के दामन से.....
इल्तजा हैं नजरें फेर कर अनजाना ना समझ
जी ही लेता हैं हर कोई इश्क-ऐ-हालत में तनहा,
मुझे भी जलती शमा का परवाना न समझ.......
मैं तो वो तस्वीर हूँ तेरी महरूम मोहब्बत की,
मुझे तेरी आदतों का अफसाना न समझ.....
Friday, February 24, 2012
"मुस्कुराता रहा हु मै"
तन्हाई में ये गीत गाता रहा हु मै,
ज़ख़्म गहरा हो चाहे जितना ,
मुस्कुराता रहा हु मै.
एक बार जो लुटा था नशेमन खुवाब का,
हर बार उन्हें जोड़ के जाता रहा हु मै,
तन्हाई में ये गीत गाता रहा हु मै.
तुम दूर हो बैठे मेरी बेजां निगाह से,
तुम दूर - - - - - - - - - - - -निगाह से,
पर हरकतें तेरी निहारता रहा हु मै.,
तन्हाई में ये गीत गाता रहा हु मै.
एक बार जो मिलो तो मिल के मुस्कुरा देना,
तुम हंस के मांगना भले फिर जां मांग लेना.
तेरे वायदे कसम तेरी जोड़ता रहा हु मै ,
एक सांस आखरी तुझे बुलाता रहा हु मै.,
तन्हाई में ये गीत गाता रहा हु मै.
कुर्बान गर हुआ तो भी चाहूँगा तुझको,
हर दर पे खुदा से मांगता रहूँगा तुझको.
हर बार दर्द -ए- निशानी संभालता रहा हु मै,
हर तीर निशाने का निकालता रहा हु मै,
तन्हाई में ये गीत गाता रहा हु मै.
"एक माँ के कुछ अलफ़ाज़ अपने बेटे के प्रति"
जब धरणी के आँचल में,तुम जैसा फूल खिला.
छाया अमंद सुख नीरद,वसुधा का तन महका.
बन कुसुम सदा मस्तक पर,चढ़,माँ की कीर्ति बढ़ाना.
ममता के उस आँचल को,सुख यश से सदा सजाना.
बन जल्द झुलसते जन को,मन आँगन पर यू बरसो.
जन - जन के मन को भी तुम,सुख से अप्लावित कर दो.
ज्यों अरुण उषा रानी से,अटखेली करता बढ़ता.
चढ़ता पश्चिम की छत पर,जग को किरणों से भरता.
यूँ प्रतिक्षण जीवन पथ पर,ऊँचाई ही तुम पाना.
पर ऊँचाई पे चढ़ कर तुम,इस वसुधा को नहीं भुलाना.
यह वसुधा माँ है तेरी,ममता पर हक़ तेरा है.
बस तेरे लिए सलोने,अर्पित जीवन मेरा है.
____________________________________
यह कल्पना नहीं,हर एक माँ की उसके बेटे से कामना है.
आप सब से विनीति है की अपनी माँ का खुद से भी जादा ख्याल रखे.
क्योंकि
हमारे असली भगवान् तो हमारे मी बाप हैं जिनसे आपने कुछ भी माँगा है तो
उन्होंने ने बिना किसी परीक्षा के दिया है और तुरंत दिया है,और आप को सबसे
बड़ी जागीर दी है जिससे आप आज इस ग़ज़ल को पढ़ पा रहे हो {शिक्षा}.
**एक ख्वाब**
"ख्वाब लाचार हो गया"
इस मतलबी दुनिया में ये हादसा हर-बार हो गया,
आज फिर से इक बार मैं ही गुनाहगार हो गया ।
जिन्हें भरोसा था हम पे खुद से भी ज्यादा,
आज मुझे छोड़ उन्हें सब पे ऐतबार हो गया।
वो खुश हैं अकेले ही कुचल के दिल मेरा ,
मेरे लिए तो खुला आसमां भी कारागार हो गया।
है अश्कों का समंदर तैयार बहने को,
रो सकूँ जिसपे वो कंधा भी दुश्वार हो गया।
सोचता हूँ अपने दिल को भी क्या कह के कोसूं,
मेरे हिस्से का सुख भी आज दरकिनार हो गया।
अब और किसे मैं अपने दिल के जख्म दिखाऊ,
आज मुझसे नाराज मेरा परवर-दिगार हो गया।
यूँ तो संभला हूँ बहुत बार गिरने के बाद भी ,
पर 'शहर- ऐ- ख्वाब' आज फिर से लाचार हो गया.
** एक ख्वाब*
के अब जाना होगा
अब आंसुओं को आँखों में ही सजाना होगा,
चिराग बुझ गए-- अब खुद को जलाना होगा.
तुम समझते हो के खुश हैं हम बिछड़ कर तुमसे,
अरे नासमझ हमे दुनिया की खातिर मुस्कुराना होगा.
तुम न आओगे मिलने इस बार फिर से,
हम जानते हैं तेरा क्या बहाना होगा.
पैरों में लगी होगी तेरे मेहँदी,
या तुझे किसी और से मिलने जाना होगा.
हम सोचते ही रह गए तेरे आने का सबब,
लगता है फिर से दिल को उम्मीदों से सजाना होगा.
वादे बेफतूली कर के मुस्कुराते हो आप जिस कदर,
देखना एक रोज़ आपको पछताना होगा.
लहू से लिख जाऊंगा कफ़न पे नाम तेरा अपने,
कलेजा थाम कर अपने हाथों में तुम्हे आना होगा.
न कीजिये तकाज़े मसरूफियत के अभी से,
अभी अर्थी है उठनी बाकी कंधा तो लगाना होगा,
अब चैन से सोयेंगे तेरे इश्क का कफ़न ओढ़ कर,
कहा इस जग में हमसा कोई दीवाना होगा,
किया है मुद्दतों इंतज़ार तेरा ऐ दोस्त सलीके से,
बहुत थक गया ये "ख्वाब" के अब जाना होगा
**एक ख्वाब**
चिराग बुझ गए-- अब खुद को जलाना होगा.
तुम समझते हो के खुश हैं हम बिछड़ कर तुमसे,
अरे नासमझ हमे दुनिया की खातिर मुस्कुराना होगा.
तुम न आओगे मिलने इस बार फिर से,
हम जानते हैं तेरा क्या बहाना होगा.
पैरों में लगी होगी तेरे मेहँदी,
या तुझे किसी और से मिलने जाना होगा.
हम सोचते ही रह गए तेरे आने का सबब,
लगता है फिर से दिल को उम्मीदों से सजाना होगा.
वादे बेफतूली कर के मुस्कुराते हो आप जिस कदर,
देखना एक रोज़ आपको पछताना होगा.
लहू से लिख जाऊंगा कफ़न पे नाम तेरा अपने,
कलेजा थाम कर अपने हाथों में तुम्हे आना होगा.
न कीजिये तकाज़े मसरूफियत के अभी से,
अभी अर्थी है उठनी बाकी कंधा तो लगाना होगा,
अब चैन से सोयेंगे तेरे इश्क का कफ़न ओढ़ कर,
कहा इस जग में हमसा कोई दीवाना होगा,
किया है मुद्दतों इंतज़ार तेरा ऐ दोस्त सलीके से,
बहुत थक गया ये "ख्वाब" के अब जाना होगा
**एक ख्वाब**
Sunday, February 12, 2012
हसरत ऐ ख्वाब
मेरा दर मेरी कब्र हरी रह गयी,
आँखें भरी थी भरी रह गयी
उन्होंने जाते हुए कहा था हम लौट कर आयेंगे,
पुतलियाँ आज भी राहों पे धरी रह गयी.
वो दर बदर भटके दौलत की आस में,
हमारी साँसे नीलाम पड़ी रह गयी.
वो समंदर और था जो डूब गया,
कश्तियाँ हमारे इश्क की बरी रह गयी.
काश होता उन्हें भी आग़ाज़-ऐ-मोहब्बत,
यही हसरत हमारी धरी की धरी रह गयी.
वो चल पड़े जब विदा होकर लाल जोड़े में,
रूह साथ हो ली धड़कन मरी रह गयी.
**एक ख्वाब**
Wednesday, February 8, 2012
{गज़ल:} ज्यों कोई अख़बार ज़िंदगी';'
पल
दो पल की यार ज़िदगी,
ज्यों
कोई अख़बार ज़िंदगी।
ख़ाली
ख़ाली, तन्हा तन्हा,
जैसे
हो इतवार ज़िदगी।
थोड़ी
बरखा, थोड़ी धूप,
मानो
हुई कुँवार ज़िदगी।
उम्र
समंदर, चाहत किश्ती,
सांसों
की पतवार ज़िदगी।
कभी
लहलहाती फसलें पर,
अक्सर
खरपतवार ज़िदगी।
कैसे
कटे, अगरचे ख़ुद है,
दोधारी
तलवार ज़िदगी।
खुला
आसमां नेमत रब की,
वरना
कारागार ज़िदगी।
ओस, बुलबुला, ख़्वाब, हकी़कत,
कुछ
भी हो, है प्यार ज़िदगी।
फिर किसी याद ने,रात भर जगाया मुझ को
फिर किसी याद ने,रात भर जगाया मुझ को
क्या सज़ा दी है,मोहबत ने खुदाया मुझ को
दिन को आराम है ना,रात को है चैन कभी
जाने किस ख़ाक से,कुदरत ने बनाया मुझ को
यूँ तो उम्मीद-ऐ-वफ़ा,तुम से नहीं है कोई
फिर चरागों की तरह,किस ने जलाया मुझ को
जब कोई भी ना रहा कन्धा,मेरे रोने को
घर की दीवारों ने , सीने से लगाया मुझ को
बेवफा ज़िन्दगी ने जब छोड़ दिया है तनहा
मौत ने प्यार से पहलू में बिठाया मुझ को
मै वो दिया हूँ जो , मोहबत ने जलाया था कभी
ग़म की अंधी ने , सर -ऐ -शाम बुझाया मुझ को
कैसे भुलाऊंगा वो , वक्त के लम्हे
याद आता रहा , तेरा रूठ के जाना मुझको,
आंधी ने दिया पता रोशन चारागों का,
मेरे ही घर में जलाया मुझको,
वो बचपन और था जवानी और थी,
चैन से सोये तो समझ आया मुझको.
अब ना आयेंगे लौट कर ऐ ख्वाब कभी,
शेहेर-ऐ-शरीफों ने बड़ा सताया मुझको.
पत्थर की दुनिया है यारों बड़ा दर्द देती है,
हम कांच सा टूटे फिर भी सजाया मुझको,
एक हम थे के टूट के भी घर सजाते गए,
और एक वो के हर बार आजमाया मुझको.
शेहेर-ऐ-शरीफों ने सताया मुझको.
मेरे ही घर में जलाया मुझको,
क्या सज़ा दी है,मोहबत ने खुदाया मुझ को
दिन को आराम है ना,रात को है चैन कभी
जाने किस ख़ाक से,कुदरत ने बनाया मुझ को
यूँ तो उम्मीद-ऐ-वफ़ा,तुम से नहीं है कोई
फिर चरागों की तरह,किस ने जलाया मुझ को
जब कोई भी ना रहा कन्धा,मेरे रोने को
घर की दीवारों ने , सीने से लगाया मुझ को
बेवफा ज़िन्दगी ने जब छोड़ दिया है तनहा
मौत ने प्यार से पहलू में बिठाया मुझ को
मै वो दिया हूँ जो , मोहबत ने जलाया था कभी
ग़म की अंधी ने , सर -ऐ -शाम बुझाया मुझ को
कैसे भुलाऊंगा वो , वक्त के लम्हे
याद आता रहा , तेरा रूठ के जाना मुझको,
आंधी ने दिया पता रोशन चारागों का,
मेरे ही घर में जलाया मुझको,
वो बचपन और था जवानी और थी,
चैन से सोये तो समझ आया मुझको.
अब ना आयेंगे लौट कर ऐ ख्वाब कभी,
शेहेर-ऐ-शरीफों ने बड़ा सताया मुझको.
पत्थर की दुनिया है यारों बड़ा दर्द देती है,
हम कांच सा टूटे फिर भी सजाया मुझको,
एक हम थे के टूट के भी घर सजाते गए,
और एक वो के हर बार आजमाया मुझको.
शेहेर-ऐ-शरीफों ने सताया मुझको.
मेरे ही घर में जलाया मुझको,
**एक***ख्वाब **
Monday, February 6, 2012
शिकायत नहीं रही.
हालाँकि हर एक से तो महोब्बत
नहीं रही
पर दिल मे किसी के लिए नफरत नहीं
रही
माँ बाप को वो अपने सताता है
नाखलफ
कहता है खुदाया तेरी बरकत नहीं
रही
ये कह के वो बचने लगा है अजान से
बुलंदी मे हूँ अब सजदे की आदत
नहीं रही
जिसकी आँखों में कटी थी ये
ज़िन्दगी
कहा है उसने अब तेरी ज़रूरत नहीं
रही
फिर यूँ हुआ राहे वफ़ा उसने भी
छोड़ दी
हम को भी महोब्बत से महोब्बत
नहीं रही
दीवानावार रो पड़ा उस रोज वो
"ख्वाब"
फिर किसी से भी कोई शिकायत नहीं
रही.
गज़ल - प्यार भले कितना ही कर लो,
प्यार
भले कितना ही कर लो, दिल में कौन बसाता है .
मीत
बना कर जिसको देखो, उतना ही तड़पाता है .
मेरा
दिल आवारा पागल, नगमें प्यार के गाता है
ठोकर
कितनी ही खाई पर बाज नही यह आता है .
मतलब
की है सारी दुनिया कौन किसे पहचाने रे
कौन
करे अब किस पे भरोसा, हर कोई भरमाता है .
अपना
दुख ही सबको लगता सबसे भारी दुनिया में
बस
अपने ही दुख में डूबा अपना राग ही गाता है .
खून
के रिश्तों पर भी देखो छाई पैसे की माया
देख
के अपनो की खुशियों को हर चेहरा मुरझाता है .
कहते
हैं अब सारी दुनिया सिमटी मुट्ठी में लेकिन
सात
समंदर पार का सपना सपना ही रह जाता है .
इंसा
नाच रहा हैवां बन, कलयुग की कैसी छाया
मैने
जिसको अपना माना, मुझको विष वो पिलाता है .
आँख
में मेरी आते आंसू, जब भी करता याद उसे
दूर
नही वह मुझसे लेकिन, पास नही आ पाता है .
इक
लम्हे के लिए भी जिसने, अपना दिल मुझको सौंपा
जीवन
भर फिर याद से अपनी, मुझको क्यूँ वो रुलाता है .
मेरे
पैरों में सर रख कर, दर्द की दी उसने दुहाई
आईना बना लेती तो अच्छा था
तू दर्दे-दिल
को आईना बना लेती तो अच्छा था
मोहब्बत की
कशिश दिल में सजा लेती तो अच्छा था
बचाने के लिए
तुम खुद को आवारा-निगाही से
निगाहे-नाज
को खंजर बना लेती तो अच्छा था
तेरी पलकों
के गोशे में कोई आंसू जो बख्शे तो
उसे तू खून
का दरिया बना लेती तो अच्छा था
सुकूं मिलता
जवानी की तलातुम-खेज मौजों को
किसी का
ख्वाब आंखों में बसा लेती तो अच्छा था
ये चाहत है
तेरी मरजी, मुझे चाहे न चाहे तू
हां, मुझको
देखकर तू मुस्कुरा देती तो अच्छा था
तुम्हारा
हुस्ने-बेपर्दा कयामत-खेज है कितना
किसी के इश्क
को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
तेरी
निगहे-करम के तो दिवाने हैं सभी लेकिन
झुका पलकें
किसी का दिल चुरा लेती तो अच्छा था
किसी के इश्क
में आंखों से जो बरसात होती है
उसी बरसात
में तू भी नहा लेती तो अच्छा था
तेरे जाने की
आहट से किसी की जां निकलती है
ना जाने किस धुन में खोये रहते हैं
कुछ जागे कुछ सोये सोये रहते हैं
ना जाने किस धुन में खोये रहते
हैं
वो कैसे बेदार करेंगे फिर हमको
जो खुद ही गफलत में खोये रहते
हैं
वहीँ पे जाने क्यूँ उगती हैं
कडवाहट
जहाँ जहाँ हम खुशबु बोये रहते
हैं
वो अपनी कश्ती क्या पार लगायेंगे
खुद को ही जो रोज डुबोएं रहते
हैं
तुझ जैसे फिर भी ना यार चमक पाए
कपडे तो यूँ हम भी धोये रहते हैं
आखों में बस नूर उतर सा आता हैं
जब हम तेरे ख्वाब संजोये रहते
हैं....
कुछ जागे कुछ सोये सोये रहते हैं
ना जाने किस धुन में खोये रहते
हैं
**एक ख्वाब**
कुछ जीत लिखू या हार लिखूँ
कुछ जीत लिखू
या हार लिखूँ
या दिल का
सारा प्यार लिखूँ
कुछ अपनो के
जज्बात लिखूँ या सपनो की सौगात लिखूँ
कुछ समझूँ या
मैं समझाऊँ या सुन के चलता ही जाऊँ
पतझड़ सावन
बरसात लिखूँ या ओस की बूँद की बात लिखूं
मै खिलता
सूरज आज लिखूँ या चेहरा चाँद गुलाब लिखूँ
वो डूबते
सुरज को देखूँ या उगते फूल की साँस लिखूँ
वो पल मे
बीते साल लिखूँ या सादियो लम्बी रात लिखूँ
मै तुमको
अपने पास लिखूँ या दूरी का ऐहसास लिखूँ
मै अन्धे के
दिन मै झाँकू या आँखों की मै रात लिखूँ
मीरा की पायल
को सुन लूँ या गौतम की मुस्कान लिखूँ
बचपन मे
बच्चों से खेलूँ या जीवन की ढलती शाम लिखूँ
सागर सा गहरा
हो जाऊँ या अम्बर का विस्तार लिखूँ
वो पहली
-पाहली प्यास लिखूँ या निश्छल पहला प्यार लिखूँ
सावन कि
बारिश मेँ भीगूँ या आन्खो की बरसात लिखूँ
गीता का
अर्जुन हो जाऊँ या लंका रावण राम लिखूँ
मै हिन्दू
मुस्लिम हो जाऊँ या बेबस इन्सान लिखूँ
मै ऎक ही
मजहब को जी लूँ या मजहब की आँखें चार लिखूँ
कुछ जीत
लिखूँ या हार लिखूँ या दिल का सारा प्यार लिखूँ
**EK KHWAAB**
बरसातें बताती हैं...
कई किस्से
कहानी कुछ तअल्लुक भी बताती हैं
ये दुनिया आज
भी तेरी मेरी बातें सुनाती हैं
गुजारी हैं
बिना तेरे ये कैसे ज़िन्दगी हमने
कई बरसों से
तनहा जागती रातें बताती हैं
महोब्बत में
सताया हैं उसको किसी ने फिर
भले वो मूह
से ना बोले मगर आँखें बताती हैं
बताएं
मंजिलों से क्या सफ़र की मुश्किलें यारों
वो भीगी
आबलों के खून से राहें बताती हैं
लुटा हैं आज
फिर साईल कहीं शीशे के महलों मे
अमीरों ने जो
बांटी हैं, वो खैरातें बताती हैं
मेरी इस पाक
धरती पे कभी जब खून बहता हैं
सुना हैं
रोता हैं अल्लाह..." ए ख्वाब "...बरसातें
बताती हैं...
Sunday, February 5, 2012
हम भूल पुरानी कर बैठे
एक
चेहरा था ,दो
आखें थीं ,हम
भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम
एक कहानी कर बैठे ...
हम तो
अल्हड-अलबेले थे ,खुद
जैसे निपट अकेले थे ,
मन नहीं रमा
तो नहीं रमा ,जग
में कितने ही मेले थे ,
पर जिस दिन
प्यास बंधी तट पर ,पनघट
इस घट में अटक गया .
एक इंगित ने
ऐसा मोड़ा,जीवन
का रथ, पथ
भटक गया ,
जिस
"पागलपन" को करने में ज्ञानी-ध्यानी घबराते है ,
वो पागलपन जी
कर खुद को ,हम
ज्ञानी-ध्यानी कर बैठे.
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर
बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम
एक कहानी कर बैठे .
परिचित-गुरुजन-परिजन
रोये,दुनिया
ने कितना समझाया
पर रोग खुदाई
था अपना ,कोई
उपचार ना चल पाया ,
एक नाम हुआ
सारी दुनिया ,काबा-काशी
एक गली हुई,
ये शेरो-सुखन
ये वाह-वाह , आहें
हैं तब की पली हुई
वो प्यास जगी
अन्तरमन में ,एक
घूंट तृप्ति को तरस गए ,
अब यही प्यास
दे कर जग को ,हम
पानी-पानी कर बैठे .
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम
भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी
कर खुद को ही, हम
एक कहानी कर बैठे .
क्या मिला और
क्या छूट गया , ये
गुना-भाग हम क्या जाने ,
हम खुद में
जल कर निखरे हैं ,कुछ
और आग हूँ क्या जाने ,
सांसों का
मोल नहीं होता ,कोई
क्या हम को लौटाए ,
जो सीस काट
कर हाथ धरे , वो
साथ हमारे आ जाए ,
कहते हैं लोग
हमें "पागल" ,कहते
हैं नादानी की है ,
हैं सफल
"सयाना" जो जग में , ऐसी
नादानी कर बैठे
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर
बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम
एक कहानी कर बैठे !!
**एक ख्वाब**
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