Followers

Monday, February 6, 2012

ना जाने किस धुन में खोये रहते हैं




कुछ जागे कुछ सोये सोये रहते हैं
ना जाने किस धुन में खोये रहते हैं
वो कैसे बेदार करेंगे फिर हमको
जो खुद ही गफलत में खोये रहते हैं
वहीँ पे जाने क्यूँ उगती हैं कडवाहट
जहाँ जहाँ हम खुशबु बोये रहते हैं
वो अपनी कश्ती क्या पार लगायेंगे
खुद को ही जो रोज डुबोएं रहते हैं
तुझ जैसे फिर भी ना यार चमक पाए
कपडे तो यूँ हम भी धोये रहते हैं
आखों में बस नूर उतर सा आता हैं
जब हम तेरे ख्वाब संजोये रहते हैं....
कुछ जागे कुछ सोये सोये रहते हैं
ना जाने किस धुन में खोये रहते हैं
**एक ख्वाब**


No comments:

Post a Comment