फिर किसी याद ने,रात भर जगाया मुझ को
क्या सज़ा दी है,मोहबत ने खुदाया मुझ को
दिन को आराम है ना,रात को है चैन कभी
जाने किस ख़ाक से,कुदरत ने बनाया मुझ को
यूँ तो उम्मीद-ऐ-वफ़ा,तुम से नहीं है कोई
फिर चरागों की तरह,किस ने जलाया मुझ को
जब कोई भी ना रहा कन्धा,मेरे रोने को
घर की दीवारों ने , सीने से लगाया मुझ को
बेवफा ज़िन्दगी ने जब छोड़ दिया है तनहा
मौत ने प्यार से पहलू में बिठाया मुझ को
मै वो दिया हूँ जो , मोहबत ने जलाया था कभी
ग़म की अंधी ने , सर -ऐ -शाम बुझाया मुझ को
कैसे भुलाऊंगा वो , वक्त के लम्हे
याद आता रहा , तेरा रूठ के जाना मुझको,
आंधी ने दिया पता रोशन चारागों का,
मेरे ही घर में जलाया मुझको,
वो बचपन और था जवानी और थी,
चैन से सोये तो समझ आया मुझको.
अब ना आयेंगे लौट कर ऐ ख्वाब कभी,
शेहेर-ऐ-शरीफों ने बड़ा सताया मुझको.
पत्थर की दुनिया है यारों बड़ा दर्द देती है,
हम कांच सा टूटे फिर भी सजाया मुझको,
एक हम थे के टूट के भी घर सजाते गए,
और एक वो के हर बार आजमाया मुझको.
शेहेर-ऐ-शरीफों ने सताया मुझको.
मेरे ही घर में जलाया मुझको,
क्या सज़ा दी है,मोहबत ने खुदाया मुझ को
दिन को आराम है ना,रात को है चैन कभी
जाने किस ख़ाक से,कुदरत ने बनाया मुझ को
यूँ तो उम्मीद-ऐ-वफ़ा,तुम से नहीं है कोई
फिर चरागों की तरह,किस ने जलाया मुझ को
जब कोई भी ना रहा कन्धा,मेरे रोने को
घर की दीवारों ने , सीने से लगाया मुझ को
बेवफा ज़िन्दगी ने जब छोड़ दिया है तनहा
मौत ने प्यार से पहलू में बिठाया मुझ को
मै वो दिया हूँ जो , मोहबत ने जलाया था कभी
ग़म की अंधी ने , सर -ऐ -शाम बुझाया मुझ को
कैसे भुलाऊंगा वो , वक्त के लम्हे
याद आता रहा , तेरा रूठ के जाना मुझको,
आंधी ने दिया पता रोशन चारागों का,
मेरे ही घर में जलाया मुझको,
वो बचपन और था जवानी और थी,
चैन से सोये तो समझ आया मुझको.
अब ना आयेंगे लौट कर ऐ ख्वाब कभी,
शेहेर-ऐ-शरीफों ने बड़ा सताया मुझको.
पत्थर की दुनिया है यारों बड़ा दर्द देती है,
हम कांच सा टूटे फिर भी सजाया मुझको,
एक हम थे के टूट के भी घर सजाते गए,
और एक वो के हर बार आजमाया मुझको.
शेहेर-ऐ-शरीफों ने सताया मुझको.
मेरे ही घर में जलाया मुझको,
**एक***ख्वाब **
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