कई किस्से
कहानी कुछ तअल्लुक भी बताती हैं
ये दुनिया आज
भी तेरी मेरी बातें सुनाती हैं
गुजारी हैं
बिना तेरे ये कैसे ज़िन्दगी हमने
कई बरसों से
तनहा जागती रातें बताती हैं
महोब्बत में
सताया हैं उसको किसी ने फिर
भले वो मूह
से ना बोले मगर आँखें बताती हैं
बताएं
मंजिलों से क्या सफ़र की मुश्किलें यारों
वो भीगी
आबलों के खून से राहें बताती हैं
लुटा हैं आज
फिर साईल कहीं शीशे के महलों मे
अमीरों ने जो
बांटी हैं, वो खैरातें बताती हैं
मेरी इस पाक
धरती पे कभी जब खून बहता हैं
सुना हैं
रोता हैं अल्लाह..." ए ख्वाब "...बरसातें
बताती हैं...
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