एक
चेहरा था ,दो
आखें थीं ,हम
भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम
एक कहानी कर बैठे ...
हम तो
अल्हड-अलबेले थे ,खुद
जैसे निपट अकेले थे ,
मन नहीं रमा
तो नहीं रमा ,जग
में कितने ही मेले थे ,
पर जिस दिन
प्यास बंधी तट पर ,पनघट
इस घट में अटक गया .
एक इंगित ने
ऐसा मोड़ा,जीवन
का रथ, पथ
भटक गया ,
जिस
"पागलपन" को करने में ज्ञानी-ध्यानी घबराते है ,
वो पागलपन जी
कर खुद को ,हम
ज्ञानी-ध्यानी कर बैठे.
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर
बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम
एक कहानी कर बैठे .
परिचित-गुरुजन-परिजन
रोये,दुनिया
ने कितना समझाया
पर रोग खुदाई
था अपना ,कोई
उपचार ना चल पाया ,
एक नाम हुआ
सारी दुनिया ,काबा-काशी
एक गली हुई,
ये शेरो-सुखन
ये वाह-वाह , आहें
हैं तब की पली हुई
वो प्यास जगी
अन्तरमन में ,एक
घूंट तृप्ति को तरस गए ,
अब यही प्यास
दे कर जग को ,हम
पानी-पानी कर बैठे .
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम
भूल पुरानी कर बैठे .
एक किस्सा जी
कर खुद को ही, हम
एक कहानी कर बैठे .
क्या मिला और
क्या छूट गया , ये
गुना-भाग हम क्या जाने ,
हम खुद में
जल कर निखरे हैं ,कुछ
और आग हूँ क्या जाने ,
सांसों का
मोल नहीं होता ,कोई
क्या हम को लौटाए ,
जो सीस काट
कर हाथ धरे , वो
साथ हमारे आ जाए ,
कहते हैं लोग
हमें "पागल" ,कहते
हैं नादानी की है ,
हैं सफल
"सयाना" जो जग में , ऐसी
नादानी कर बैठे
एक चेहरा था ,दो आखें थीं ,हम भूल पुरानी कर
बैठे .
एक किस्सा जी कर खुद को ही, हम
एक कहानी कर बैठे !!
**एक ख्वाब**
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