जब धरणी के आँचल में,तुम जैसा फूल खिला.
छाया अमंद सुख नीरद,वसुधा का तन महका.
बन कुसुम सदा मस्तक पर,चढ़,माँ की कीर्ति बढ़ाना.
ममता के उस आँचल को,सुख यश से सदा सजाना.
बन जल्द झुलसते जन को,मन आँगन पर यू बरसो.
जन - जन के मन को भी तुम,सुख से अप्लावित कर दो.
ज्यों अरुण उषा रानी से,अटखेली करता बढ़ता.
चढ़ता पश्चिम की छत पर,जग को किरणों से भरता.
यूँ प्रतिक्षण जीवन पथ पर,ऊँचाई ही तुम पाना.
पर ऊँचाई पे चढ़ कर तुम,इस वसुधा को नहीं भुलाना.
यह वसुधा माँ है तेरी,ममता पर हक़ तेरा है.
बस तेरे लिए सलोने,अर्पित जीवन मेरा है.
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यह कल्पना नहीं,हर एक माँ की उसके बेटे से कामना है.
आप सब से विनीति है की अपनी माँ का खुद से भी जादा ख्याल रखे.
क्योंकि
हमारे असली भगवान् तो हमारे मी बाप हैं जिनसे आपने कुछ भी माँगा है तो
उन्होंने ने बिना किसी परीक्षा के दिया है और तुरंत दिया है,और आप को सबसे
बड़ी जागीर दी है जिससे आप आज इस ग़ज़ल को पढ़ पा रहे हो {शिक्षा}.
**एक ख्वाब**
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